॥ दोहा ॥
श्री गुरु पद सुमरण करूं, गौरी नंदन ध्याय ।
वरणो माता जीण यश, चरणों शीश नवाय ॥
झाँकी की अदभुद छवि, शोभा वर्णी न जाय ।
जो नित सुमरे माय को, कष्ट दुर हो जाय ॥
॥ चौपाई ॥
जय श्री जीणभक्त सुखकारी । नमो नमो भक्तन हितकारी ॥१॥
दुर्गा की तुम हो अवतारा । सकल कष्ट तु मेट हमारा ॥२॥
महाभयंकर तेज तुम्हारा । महिषासुर सा दुष्ट संहारा ॥३॥
कंचन छत्र शिष पर सोहे । देखत रूप चराचर मोहे ॥४॥
तुम क्षत्रीधर तनधर लिन्हां । भक्तों के सब कारज किन्हां ॥५॥
महाशक्ति तुम सुन्दर बाला । डरपत भूत प्रेत जम काला ॥६॥
ब्रहमा विष्णु शंकर ध्यावे । ऋषि मुनि कोई पार न पावे ॥७॥
तुम गौरी तुम शारदा काली । रमा लक्ष्मी तुम कपपाली ॥८॥
जगदम्बा भवरों की रानी । मैया मात तू महाभवानी ॥९॥
सत पर तजे जीण तुम गेहा । त्यागा सब से क्षण में नेहा ॥१०॥
महातपस्या करनी ठानी । हरष खास था भाई ज्ञानी ॥११॥
पिछे से आकर समझाई । घर वापिस चल माँ की जाई ॥१२॥
बहुत कही पर एक ना मानी । तब हरसा यूँ उचरी बानी ॥१३॥
मैं भी बाई घर नहीं जाऊँ । तेरे साथ राम गुण गाऊँ ॥१४॥
अलग अलग तप स्थल किन्हां । रैन दिवस तप मैं चितदीन्हा ॥१५॥
तुम तप कर दुर्गात्व पाया । हरषनाथ भैरू बन छाया ॥१६॥
वाहन सिंह खडक कर चमके । महातेज बिजली सा दमके ॥१७॥
चक्र गदा त्रिशूल विराजे । भागे दुष्ट जब दुर्गा जागे ॥१८॥
मुगल बादशाह चढकर आया । सेना बहुत सजाकर लाया ॥१९॥
भैरव का मंदिर तुड़वाया । फिर वो इस मंदिर पर धाया ॥२०॥
यह देख पुजारी घबराये । करी स्तुति मात जगाये ॥२१॥
तब माता तु भौरें छोडे । सेना सहित भागे घोड़े ॥२२॥
बल का तेज देख घबराया । जा चरणों में शीश नवाया ॥२३॥
क्षमा याचना किन्हीं भारी । काट जीण मेरी सब बेमारी ॥२४॥
सोने का वो छत्र चढ़ाया । तेल सवामन और बंधाया ॥२५॥
चमक रही कलयुग में माई । तीन लोक में महिमा छाई ॥२६॥
जो कोई तेरे मंदिर आवे । सच्चे मन से भोग लगावे ॥२७॥
रोली वस्त्र कपूर चढ़ावे । मनवांछित पूर्ण फल पावे ॥२८॥
करे आरती भजन सुनावे । सो नर शोभा जग में पावे ॥२९॥
शेखा वाटी धाम तुम्हारा । सुन्दर शोभा नहीं सुम्हारा ॥३०॥
अश्विन मास नौराता माही । कई यात्री आवे जाही ॥३१॥
देश-देश से आवे रेला । चैत मास में लागे मेला ॥३२॥
आवे ऊँट कार बस लारी । भीड़ लगे मेला में भारी ॥३३॥
साज-बाज से करते गाना । कई मर्द और कई जनाना ॥३४॥
जात झडुला चढे अपारा । सवामणी का पाऊ न पारा ॥३५॥
मदिरा में रहती मतवाली । जय जगदम्बा जय महाकाली ॥३६॥
जो कोई तुम्हरे दर्शन पावे । मौज करे जुग-जुग सुख पावे ॥३७॥
तुम्ही हमारी पितु और माता । भक्ति शक्ति दो हे दाता ॥३८॥
जीण चालीसा जो कोई गावे । सो सत पाठ करे करवावे ॥३९॥
मैया नैया पार लगावे । सेवक चरणों में चित् लावे ॥४०॥
॥ दोहा ॥
जय दुर्गा जय अंबिका जग जननी गिरी राय ।
दया करो हे चंडिका विनऊ शीश नवाय ॥
॥ इति श्री जीण माता चालीसा संपूर्णम् ॥