May 7, 2024

श्री राम चालीसा | Shri Ram Chalisa

॥ दोहा ॥

आदौ राम तपोवनादि गमनं हत्वाह् मृगा काञ्चनं ।
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीव संभाषणं ॥
बाली निर्दलं समुद्र तरणं लङ्कापुरी दाहनम् ।
पश्चद्रावनं कुम्भकर्णं हननं एतद्धि रामायणं ॥

॥ चौपाई ॥

श्री रघुबीर भक्त हितकारी । सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी ॥१॥
निशि दिन ध्यान धरै जो कोई । ता सम भक्त और नहिं होई ॥२॥
ध्यान धरे शिवजी मन माहीं । ब्रह्मा इन्द्र पार नहिं पाहीं ॥३॥
जय जय जय रघुनाथ कृपाला । सदा करो सन्तन प्रतिपाला ॥४॥

दूत तुम्हार वीर हनुमाना । जासु प्रभाव तिहूँ पुर जाना ॥५॥
तुव भुजदण्ड प्रचण्ड कृपाला । रावण मारि सुरन प्रतिपाला ॥६॥
तुम अनाथ के नाथ गोसाईं । दीनन के हो सदा सहाई ॥७॥
ब्रह्मादिक तव पार न पावैं । सदा ईश तुम्हरो यश गावैं ॥८॥

चारिउ वेद भरत हैं साखी । तुम भक्तन की लज्जा राखी ॥९॥
गुण गावत शारद मन माहीं । सुरपति ताको पार न पाहीं ॥१०॥
नाम तुम्हार लेत जो कोई । ता सम धन्य और नहिं होई ॥११॥
राम नाम है अपरम्पारा । चारिहु वेदन जाहि पुकारा ॥१२॥

गणपति नाम तुम्हारो लीन्हों । तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हों ॥१३॥
शेष रटत नित नाम तुम्हारा । महि को भार शीश पर धारा ॥१४॥
फूल समान रहत सो भारा । पावत कोउ न तुम्हरो पारा ॥१५॥
भरत नाम तुम्हरो उर धारो । तासों कबहुँ न रण में हारो ॥१६॥

नाम शत्रुहन हृदय प्रकाशा । सुमिरत होत शत्रु कर नाशा ॥१७॥
लषन तुम्हारे आज्ञाकारी । सदा करत सन्तन रखवारी ॥१८॥
ताते रण जीते नहिं कोई । युद्ध जुरे यमहूँ किन होई ॥१९॥
महा लक्ष्मी धर अवतारा । सब विधि करत पाप को छारा ॥२०॥

सीता राम पुनीता गायो । भुवनेश्वरी प्रभाव दिखायो ॥२१॥
घट सों प्रकट भई सो आई । जाको देखत चन्द्र लजाई ॥२२॥
सो तुमरे नित पांव पलोटत । नवो निद्धि चरणन में लोटत ॥२३॥
सिद्धि अठारह मंगल कारी । सो तुम पर जावै बलिहारी ॥२४॥

औरहु जो अनेक प्रभुताई । सो सीतापति तुमहिं बनाई ॥२५॥
इच्छा ते कोटिन संसारा । रचत न लागत पल की बारा ॥२६॥
जो तुम्हरे चरनन चित लावै । ताको मुक्ति अवसि हो जावै ॥२७॥
सुनहु राम तुम तात हमारे । तुमहिं भरत कुल- पूज्य प्रचारे ॥२८॥

तुमहिं देव कुल देव हमारे । तुम गुरु देव प्राण के प्यारे ॥२९॥
जो कुछ हो सो तुमहीं राजा । जय जय जय प्रभु राखो लाजा ॥३०॥
रामा आत्मा पोषण हारे । जय जय जय दशरथ के प्यारे ॥३१॥
जय जय जय प्रभु ज्योति स्वरूपा । निगुण ब्रह्म अखण्ड अनूपा ॥३२॥

सत्य सत्य जय सत्य-ब्रत स्वामी । सत्य सनातन अन्तर्यामी ॥३३॥
सत्य भजन तुम्हरो जो गावै । सो निश्चय चारों फल पावै ॥३४॥
सत्य शपथ गौरीपति कीन्हीं । तुमने भक्तहिं सब सिद्धि दीन्हीं ॥३५॥
ज्ञान हृदय दो ज्ञान स्वरूपा । नमो नमो जय जापति भूपा ॥३६॥

धन्य धन्य तुम धन्य प्रतापा । नाम तुम्हार हरत संतापा ॥३७॥
सत्य शुद्ध देवन मुख गाया । बजी दुन्दुभी शंख बजाया ॥३८॥
सत्य सत्य तुम सत्य सनातन । तुमहीं हो हमरे तन मन धन ॥३९॥
याको पाठ करे जो कोई । ज्ञान प्रकट ताके उर होई ॥४०॥

आवागमन मिटै तिहि केरा । सत्य वचन माने शिव मेरा ॥४१॥
और आस मन में जो ल्यावै । तुलसी दल अरु फूल चढ़ावै ॥४२॥
साग पत्र सो भोग लगावै । सो नर सकल सिद्धता पावै ॥४३॥
अन्त समय रघुबर पुर जाई । जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ॥४४॥
श्री हरि दास कहै अरु गावै । सो वैकुण्ठ धाम को पावै ॥४५॥

॥ दोहा ॥

सात दिवस जो नेम कर पाठ करे चित लाय ।
हरिदास हरिकृपा से अवसि भक्ति को पाय ॥

राम चालीसा जो पढ़े रामचरण चित लाय ।
जो इच्छा मन में करै सकल सिद्ध हो जाय ॥

॥ इति श्री राम चालीसा संपूर्णम् ॥

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