॥ दोहा ॥
अलख निरंजन आप हैं, निरगुण सगुण हमेश ।
नाना विधि अवतार धर, हरते जगत कलेश ॥
बाबा गंगारामजी, हुए विष्णु अवतार ।
चमत्कार लख आपका, गूँज उठी जयकार ॥
॥ चौपाई ॥
गंगाराम देव हितकारी । वैश्य वंश प्रकटे अवतारी ॥१॥
पूर्वजन्म फल अमित रहेऊ । धन्य-धन्य पितु मातु भयेउ ॥२॥
उत्तम कुल उत्तम सतसंगा । पावन नाम राम अरू गंगा ॥३॥
बाबा नाम परम हितकारी । सत सत वर्ष सुमंगलकारी ॥४॥
बीतहिं जन्म देह सुध नाहीं । तपत तपत पुनि भयेऊ गुसाई ॥५॥
जो जन बाबा में चित लावा । तेहिं परताप अमर पद पावा ॥६॥
नगर झुंझनूं धाम तिहारो । शरणागत के संकट टारो ॥७॥
धरम हेतु सब सुख बिसराये । दीन हीन लखि हृदय लगाये ॥८॥
एहि विधि चालीस वर्ष बिताये । अन्त देह तजि देव कहाये ॥९॥
देवलोक भई कंचन काया । तब जनहित संदेश पठाया ॥१०॥
निज कुल जन को स्वप्न दिखावा । भावी करम जतन बतलावा ॥११॥
आपन सुत को दर्शन दीन्हों । धरम हेतु सब कारज कीन्हों ॥१२॥
नभ वाणी जब हुई निशा में । प्रकट भई छवि पूर्व दिशा में ॥१३॥
ब्रह्मा विष्णु शिव सहित गणेशा । जिमि जनहित प्रकटेउ सब ईशा ॥१४॥
चमत्कार एहि भांति दिखाया । अन्तरध्यान भई सब माया ॥१५॥
सत्य वचन सुनि करहिं विचारा । मन महँ गंगाराम पुकारा ॥१६॥
जो जन करई मनौती मन में । बाबा पीर हरहिं पल छन में ॥१७॥
ज्यों निज रूप दिखावहिं सांचा । त्यों त्यों भक्तवृन्द तेहिं जांचा ॥१८॥
उच्च मनोरथ शुचि आचारी । राम नाम के अटल पुजारी ॥१९॥
जो नित गंगाराम पुकारे । बाबा दुख से ताहिं उबारे ॥२०॥
बाबा में जिन्ह चित्त लगावा । ते नर लोक सकल सुख पावा ॥२१॥
परहित बसहिं जाहिं मन मांही । बाबा बसहिं ताहिं तन मांही ॥२२॥
धरहिं ध्यान रावरो मन में । सुखसंतोष लहै न मन में ॥२३॥
धर्म वृक्ष जेही तन मन सींचा । पार ब्रह्म तेहि निज में खींचा ॥२४॥
गंगाराम नाम जो गावे । लहि बैकुंठ परम पद पावे ॥२५॥
बाबा पीर हरहिं सब भांति । जो सुमरे निश्छल दिन राती ॥२६॥
दीन बन्धु दीनन हितकारी । हरौ पाप हम शरण तिहारी ॥२७॥
पंचदेव तुम पूर्ण प्रकाशा । सदा करो संतन मँह बासा ॥२८॥
तारण तरण गंग का पानी । गंगाराम उभय सुनिशानी ॥२९॥
कृपासिंधु तुम हो सुखसागर । सफल मनोरथ करहु कृपाकर ॥३०॥
झुंझनूं नगर बड़ा बड़ भागी । जहँ जन्में बाबा अनुरागी ॥३१॥
पूरन ब्रह्म सकल घटवासी । गंगाराम अमर अविनाशी ॥३२॥
ब्रह्म रूप देव अति भोला । कानन कुण्डल मुकुट अमोला ॥३३॥
नित्यानन्द तेज सुख रासी । हरहु निशातन करहु प्रकासी ॥३४॥
गंगा दशहरा लागहिं मेला । नगर झुंझनूं मँह शुभ बेला ॥३५॥
जो नर कीर्तन करहिं तुम्हारा । छवि निरखि मन हरष अपारा ॥३६॥
प्रात: काल ले नाम तुम्हारा । चौरासी का हो निस्तारा ॥३७॥
पंचदेव मन्दिर विख्याता । दरशन हित भगतन का तांता ॥३८॥
जय श्री गंगाराम नाम की । भवतारण तरि परम धाम की ॥३९॥
‘महावीर‘ धर ध्यान पुनीता । विरचेउ गंगाराम सुगीता ॥४०॥
॥ दोहा ॥
सुने सुनावे प्रेम से, कीर्तन भजन सुनाम ।
मन इच्छा सब कामना, पुरई गंगाराम ॥
॥ इति श्री बाबा गंगाराम चालीसा संपूर्णम् ॥