May 19, 2024

श्री नर्मदा चालीसा | Shri Narmada Chalisa

॥दोहा॥

देवि पूजित, नर्मदा, महिमा बड़ी अपार ।
चालीसा वर्णन करत, कवि अरु भक्त उदार ॥
इनकी सेवा से सदा, मिटते पाप महान ।
तट पर कर जप दान नर, पाते हैं नित ज्ञान ॥

॥ चौपाई ॥

जय-जय-जय नर्मदा भवानी । तुम्हरी महिमा सब जग जानी ॥१॥
अमरकण्ठ से निकली माता । सर्व सिद्धि नव निधि की दाता ॥२॥
कन्या रूप सकल गुण खानी । जब प्रकटीं नर्मदा भवानी ॥३॥
सप्तमी सूर्य मकर रविवारा । अश्वनि माघ मास अवतारा ॥४॥

वाहन मकर आपको साजैं । कमल पुष्प पर आप विराजैं ॥५॥
ब्रह्मा हरि हर तुमको ध्यावैं । तब ही मनवांछित फल पावैं ॥६॥
दर्शन करत पाप कटि जाते । कोटि भक्त गण नित्य नहाते ॥७॥
जो नर तुमको नित ही ध्यावै । वह नर रुद्र लोक को जावैं ॥८॥

मगरमच्छा तुम में सुख पावैं । अंतिम समय परमपद पावैं ॥९॥
मस्तक मुकुट सदा ही साजैं । पांव पैंजनी नित ही राजैं ॥१०॥
कल-कल ध्वनि करती हो माता । पाप ताप हरती हो माता ॥११॥
पूरब से पश्चिम की ओरा । बहतीं माता नाचत मोरा ॥१२॥

शौनक ऋषि तुम्हरौ गुण गावैं । सूत आदि तुम्हरौं यश गावैं ॥१३॥
शिव गणेश भी तेरे गुण गवैं । सकल देव गण तुमको ध्यावैं ॥१४॥
कोटि तीर्थ नर्मदा किनारे । ये सब कहलाते दु:ख हारे ॥१५॥
मनोकमना पूरण करती । सर्व दु:ख माँ नित ही हरतीं ॥१६॥

कनखल में गंगा की महिमा । कुरुक्षेत्र में सरस्वती महिमा ॥१७॥
पर नर्मदा ग्राम जंगल में । नित रहती माता मंगल में ॥१८॥
एक बार कर के स्नाना । तरत पिढ़ी है नर नारा ॥१९॥
मेकल कन्या तुम ही रेवा । तुम्हरी भजन करें नित देवा ॥२०॥

जटा शंकरी नाम तुम्हारा । तुमने कोटि जनों को है तारा ॥२१॥
समोद्भवा नर्मदा तुम हो । पाप मोचनी रेवा तुम हो ॥२२॥
तुम्हरी महिमा कहि नहीं जाई । करत न बनती मातु बड़ाई ॥२३॥
जल प्रताप तुममें अति माता । जो रमणीय तथा सुख दाता ॥२४॥

चाल सर्पिणी सम है तुम्हारी । महिमा अति अपार है तुम्हारी ॥२५॥
तुम में पड़ी अस्थि भी भारी । छुवत पाषाण होत वर वारि ॥२६॥
यमुना मे जो मनुज नहाता । सात दिनों में वह फल पाता ॥२७॥
सरस्वती तीन दीनों में देती । गंगा तुरत बाद हीं देती ॥२८॥

पर रेवा का दर्शन करके । मानव फल पाता मन भर के ॥२९॥
तुम्हरी महिमा है अति भारी । जिसको गाते हैं नर-नारी ॥३०॥
जो नर तुम में नित्य नहाता । रुद्र लोक मे पूजा जाता ॥३१॥
जड़ी बूटियां तट पर राजें । मोहक दृश्य सदा हीं साजें ॥३२॥

वायु सुगंधित चलती तीरा । जो हरती नर तन की पीरा ॥३३॥
घाट-घाट की महिमा भारी । कवि भी गा नहिं सकते सारी ॥३४॥
नहिं जानूँ मैं तुम्हरी पूजा । और सहारा नहीं मम दूजा ॥३५॥
हो प्रसन्न ऊपर मम माता । तुम ही मातु मोक्ष की दाता ॥३६॥

जो मानव यह नित है पढ़ता । उसका मान सदा ही बढ़ता ॥३७॥
जो शत बार इसे है गाता । वह विद्या धन दौलत पाता ॥३८॥
अगणित बार पढ़ै जो कोई । पूरण मनोकामना होई ॥३९॥
सबके उर में बसत नर्मदा । यहां वहां सर्वत्र नर्मदा ॥४०॥

॥ दोहा ॥

भक्ति भाव उर आनि के, जो करता है जाप ।
माता जी की कृपा से, दूर होत संताप ॥

॥ इति श्री नर्मदा चालीसा संपूर्णम् ॥

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