November 21, 2024

श्री दुर्गा चालीसा | Shri Durga Chalisa

॥ चौपाई ॥

नमो नमो दुर्गे सुख करनी । नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी ॥१॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी । तिहूँ लोक फैली उजियारी ॥२॥
शशि ललाट मुख महाविशाला । नेत्र लाल भृकुटि विकराला ॥३॥
रूप मातु को अधिक सुहावे । दरश करत जन अति सुख पावे ॥४॥

तुम संसार शक्ति लै कीना । पालन हेतु अन्न धन दीना ॥५॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला । तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥६॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी । तुम गौरी शिवशंकर प्यारी ॥७॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें । ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥८॥

रूप सरस्वती को तुम धारा । दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा ॥९॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा । परगट भई फाड़कर खम्बा ॥१०॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो । हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो ॥११॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं । श्री नारायण अंग समाहीं ॥१२॥

क्षीरसिन्धु में करत विलासा । दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥१३॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी । महिमा अमित न जात बखानी ॥१४॥
मातंगी अरु धूमावति माता । भुवनेश्वरी बगला सुख दाता ॥१५॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी । छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी ॥१६॥

केहरि वाहन सोह भवानी । लांगुर वीर चलत अगवानी ॥१७॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै । जाको देख काल डर भाजै ॥१८॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला । जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥१९॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत । तिहुँलोक में डंका बाजत ॥२०॥

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे । रक्तबीज शंखन संहारे ॥२१॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी । जेहि अघ भार मही अकुलानी ॥२२॥
रूप कराल कालिका धारा । सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥२३॥
परी गाढ़ सन्तन पर जब जब । भई सहाय मातु तुम तब तब ॥२४॥

अमरपुरी अरु बासव लोका । तब महिमा सब रहें अशोका ॥२५॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी । तुम्हें सदा पूजें नरनारी ॥२६॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें । दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें ॥२७॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई । जन्ममरण ताकौ छुटि जाई ॥२८॥

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी । योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥२९॥
शंकर आचारज तप कीनो । काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ॥३०॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को । काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ॥३१॥
शक्ति रूप का मरम न पायो । शक्ति गई तब मन पछितायो ॥३२॥

शरणागत हुई कीर्ति बखानी । जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥३३॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा । दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥३४॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो । तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो ॥३५॥
आशा तृष्णा निपट सतावें । मोह मदादिक सब बिनशावें ॥३६॥

शत्रु नाश कीजै महारानी । सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी ॥३७॥
करो कृपा हे मातु दयाला । ऋद्धिसिद्धि दै करहु निहाला ॥३८॥
जब लगि जिऊँ दया फल पाऊँ । तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊँ ॥३९॥
श्री दुर्गा चालीसा जो कोई गावै । सब सुख भोग परमपद पावै ॥४०॥

देवीदास शरण निज जानी । कहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥४१॥

॥ दोहा ॥

शरणागत रक्षा करे, भक्त रहे नि:शंक ।
मैं आया तेरी शरण में, मातु लिजिये अंक ॥

॥ इति श्री दुर्गा चालीसा संपूर्णम् ॥

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