॥ दोहा ॥
जय जय कैला मात है तुम्हे नमाउ माथ ।
शरण पडू में चरण में जोडू दोनों हाथ ॥
॥ चौपाई ॥
जय जय जय कैला महारानी । नमो नमो जगदम्ब भवानी ॥१॥
सब जग की हो भाग्य विधाता । आदि शक्ति तू सबकी माता ॥२॥
दोनों बहिना सबसे न्यारी । महिमा अपरम्पार तुम्हारी ॥३॥
शोभा सदन सकल गुणखानी । वैद पूराणन माँही बखानी ॥४॥
जय हो मात करौली वाली । शत प्रणाम कालीसिल वाली ॥५॥
ज्वालाजी में ज्योति तुम्हारी । हिंगलाज में तू महतारी ॥६॥
तू ही नई सैमरी वाली । तू चामुंडा तू कंकाली ॥७॥
नगर कोट में तू ही विराजे । विंध्यांचल में तू ही राजै ॥८॥
घोलागढ़ बेलौन तू माता । वैष्णवदेवी जग विख्याता ॥९॥
नव दुर्गा तू मात भवानी । चामुंडा मंशा कल्याणी ॥१०॥
जय जय सूये चोले वाली । जय काली कलकत्ते वाली ॥११॥
तू ही लक्ष्मी तू ही ब्रम्हाणी । पार्वती तू ही इन्द्राणी ॥१२॥
सरस्वती तू विध्या दाता । तू ही है संतोषी माता ॥१३॥
अन्नपुर्णा तू जग पालक । मात पिता तू ही हम बालक ॥१४॥
ता राधा तू सावित्री । तारा मतंग्डिंग गायत्री ॥१५॥
तू ही आदि सुंदरी अम्बा । मात चर्चिका हे जगदम्बा ॥१६॥
एक हाथ में खप्पर राजै । दूजे हाथ त्रिशूल विराजै ॥१७॥
काली सिल पै दानव मारे । राजा नल के कारज सारे ॥१८॥
शुम्भ निशुम्भ नसावनि हारी । महिषासुर को मारनवारी ॥१९॥
रक्तबीज रण बीच पछारो । शंखा सुर तैने संहारो ॥२०॥
ऊँचे नीचे पर्वत वारी । करती माता सिंह सवारी ॥२१॥
ध्वजा तेरी ऊपर फहरावे । तीन लोक में यश फैलावे ॥२२॥
अष्ट प्रहर माँ नौबत बाजै । चाँदी के चौतरा विराजै ॥२३॥
लांगुर घटूअन चलै भवन में । मात राज तेरौ त्रिभुवन में ॥२४॥
घनन घनन घन घंटा बाजत । ब्रह्मा विष्णु देव सब ध्यावत ॥२५॥
अगनित दीप जले मंदिर में । ज्योति जले तेरी घर – घर में ॥२६॥
चौसठ जोगिन आंगन नाचत । बामन भैरों अस्तुति गावत ॥२७॥
देव दनुज गन्धर्व व् किन्नर । भुत पिशाच नाग नारी नर ॥२८॥
सब मिल माता तोय मनावे । रात दिन तेरे गुण गावे ॥२९॥
जो तेरा बोले जैकारा । होय मात उसका निस्तारा ॥३०॥
मना मनौती आकर घर सै । जात लगा जो तोंकू परसै ॥३१॥
ध्वजा नारियल भेंट चढ़ावे । गुंगर लौंग सो ज्योति जलावै ॥३२॥
हलुआ पूरी भोग लगावै । रोली मेहंदी फूल चढ़ावे ॥३३॥
जो लांगुरिया गोद खिलावै । धन बल विध्या बुद्धि पावै ॥३४॥
जो माँ को जागरण करावै । चाँदी को सिर छत्र धरावै ॥३५॥
जीवन भर सारे सुख पावै । यश गौरव दुनिया में छावै ॥३६॥
जो भभूत मस्तक पै लगावे । भुत प्रेत न वाय सतावै ॥३७॥
जो कैला चालीसा पड़ता । नित्य नियम से इसे सुमरता ॥३८॥
मन वांछित वह फल को पाता । दुःख दारिद्र नष्ट हो जाता ॥३९॥
गोविन्द शिशु है शरण तुम्हारी । रक्षा कर कैला महतारी ॥४०॥
॥ दोहा ॥
संवत तत्व गुण नभ भुज सुन्दर रविवार ।
पौष सुदी दौज शुभ पूर्ण भयो यह कार ॥
॥ इति श्री कैला देवी चालीसा संपूर्णम् ॥