May 19, 2024

श्री बगलामुखी चालीसा | Shri Baglamukhi Chalisa

॥ दोहा ॥

सिर नवाइ बगलामुखी, लिखूं चालीसा आज ॥
कृपा करहु मोपर सदा, पूरन हो मम काज ॥

॥ चौपाई ॥

जय जय जय श्री बगला माता । आदिशक्ति सब जग की त्राता ॥१॥
बगला सम तब आनन माता । एहि ते भयउ नाम विख्याता ॥२॥
शशि ललाट कुण्डल छवि न्यारी । असतुति करहिं देव नर-नारी ॥३॥
पीतवसन तन पर तव राजै । हाथहिं मुद्गर गदा विराजै ॥४॥

तीन नयन गल चम्पक माला । अमित तेज प्रकटत है भाला ॥५॥
रत्न-जटित सिंहासन सोहै । शोभा निरखि सकल जन मोहै ॥६॥
आसन पीतवर्ण महारानी । भक्तन की तुम हो वरदानी ॥७॥
पीताभूषण पीतहिं चन्दन । सुर नर नाग करत सब वन्दन ॥८॥

एहि विधि ध्यान हृदय में राखै । वेद पुराण संत अस भाखै ॥९॥
अब पूजा विधि करौं प्रकाशा । जाके किये होत दुख-नाशा ॥१०॥
प्रथमहिं पीत ध्वजा फहरावै । पीतवसन देवी पहिरावै ॥११॥
कुंकुम अक्षत मोदक बेसन । अबिर गुलाल सुपारी चन्दन ॥१२॥

माल्य हरिद्रा अरु फल पाना । सबहिं चढ़इ धरै उर ध्याना ॥१३॥
धूप दीप कर्पूर की बाती । प्रेम-सहित तब करै आरती ॥१४॥
अस्तुति करै हाथ दोउ जोरे । पुरवहु मातु मनोरथ मोरे ॥१५॥
मातु भगति तब सब सुख खानी । करहुं कृपा मोपर जनजानी ॥१६॥

त्रिविध ताप सब दुख नशावहु । तिमिर मिटाकर ज्ञान बढ़ावहु ॥१७॥
बार-बार मैं बिनवहुं तोहीं । अविरल भगति ज्ञान दो मोहीं ॥१८॥
पूजनांत में हवन करावै । सा नर मनवांछित फल पावै ॥१९॥
सर्षप होम करै जो कोई । ताके वश सचराचर होई ॥२०॥

तिल तण्डुल संग क्षीर मिरावै । भक्ति प्रेम से हवन करावै ॥२१॥
दुख दरिद्र व्यापै नहिं सोई । निश्चय सुख-सम्पत्ति सब होई ॥२२॥
फूल अशोक हवन जो करई । ताके गृह सुख-सम्पत्ति भरई ॥२३॥
फल सेमर का होम करीजै । निश्चय वाको रिपु सब छीजै ॥२४॥

गुग्गुल घृत होमै जो कोई । तेहि के वश में राजा होई ॥२५॥
गुग्गुल तिल संग होम करावै । ताको सकल बंध कट जावै ॥२६॥
बीलाक्षर का पाठ जो करहीं । बीज मंत्र तुम्हरो उच्चरहीं ॥२७॥
एक मास निशि जो कर जापा । तेहि कर मिटत सकल संतापा ॥२८॥

घर की शुद्ध भूमि जहं होई । साध्का जाप करै तहं सोई ॥२९॥
सेइ इच्छित फल निश्चय पावै । यामै नहिं कदु संशय लावै ॥३०॥
अथवा तीर नदी के जाई । साधक जाप करै मन लाई ॥३१॥
दस सहस्र जप करै जो कोई । सक काज तेहि कर सिधि होई ॥३२॥

जाप करै जो लक्षहिं बारा । ताकर होय सुयशविस्तारा ॥३३॥
जो तव नाम जपै मन लाई । अल्पकाल महं रिपुहिं नसाई ॥३४॥
सप्तरात्रि जो पापहिं नामा । वाको पूरन हो सब कामा ॥३५॥
नव दिन जाप करे जो कोई । व्याधि रहित ताकर तन होई ॥३६॥

ध्यान करै जो बन्ध्या नारी । पावै पुत्रादिक फल चारी ॥३७॥
प्रातः सायं अरु मध्याना । धरे ध्यान होवैकल्याना ॥३८॥
कहं लगि महिमा कहौं तिहारी । नाम सदा शुभ मंगलकारी ॥३९॥
पाठ करै जो नित्या चालीसा । तेहि पर कृपा करहिं गौरीशा ॥४०॥

॥ दोहा ॥

सन्तशरण को तनय हूं, कुलपति मिश्र सुनाम ।
हरिद्वार मण्डल बसूं , धाम हरिपुर ग्राम ॥

उन्नीस सौ पिचानबे सन् की, श्रावण शुक्ला मास ।
चालीसा रचना कियौ, तव चरणन को दास ॥

॥ इति श्री बगलामुखी चालीसा संपूर्णम् ॥

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