🌺 हनुमान चालीसा क्या है?
“चालीसा” शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के “चालीस” शब्द से हुई है, जिसका अर्थ होता है – 40।
गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित हनुमान चालीसा में कुल 40 चौपाइयाँ होती हैं, जो भगवान हनुमान की महिमा, शक्ति, और भक्ति को दर्शाती हैं। इसके अलावा, आरंभ और समाप्ति के लिए दो दोहे भी होते हैं।
🔱 40 चौपाइयों का आध्यात्मिक रहस्य
1. संख्या का विशेष महत्व: हिंदू धर्म में 40 को तप, साधना और संयम का प्रतीक माना गया है। बहुत से व्रत भी 40 दिन के होते हैं — जैसे कि चिल्ला, उपवास आदि।
2. सरल और प्रभावशाली स्तुति: तुलसीदास जी ने चालीसा को इस तरह रचा कि आम जनमानस भी इसे सहजता से पढ़ और समझ सके। इसकी 40 चौपाइयाँ मन, शरीर और आत्मा तीनों को शुद्ध करती हैं।
3. दैनिक पाठ के लिए उपयुक्त: हनुमान चालीसा इतनी संतुलित और संक्षिप्त है कि इसे रोज़ाना कुछ ही मिनटों में पढ़ा जा सकता है, और फिर भी इसका प्रभाव अत्यंत शक्तिशाली होता है।
🙏 हनुमान चालीसा पढ़ने के लाभ
✅ भय, रोग और शोक का नाश होता है
✅ मानसिक शांति और आत्मबल में वृद्धि होती है
✅ नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है
✅ हनुमान जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है
✅ जीवन के कष्टों और संकटों से रक्षा होती है
श्री हनुमान चालीसा का पाठ दिन मंगलवार, बूढ़े मंगलवार, शनिवार पूजा, श्री राम नवमी, हनुमान जयंती, विजय दशमी, सुंदरकांड, रामचरितमानस कथा और अखंड रामायण के पाठ में प्रमुखता से किया जाने वाला पाठ है। जिसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी है और उनकी यह रचना रामायण के बाद सबसे लोकप्रिय रचनाओ में से एक है।
॥ दोहा ॥
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि ।
बरनउँ रघुबर विमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिकै, सुमिरौं पवन-कुमार ।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस विकार ॥
॥ चौपाई ॥
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥१॥
राम दूत अतुलित बल धामा । अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥२॥
महावीर विक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमति के संगी ॥३॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा । कानन कुण्डल कुँचित केसा ॥४॥
हाथ वज्र अरु ध्वजा बिराजै । काँधे मूँज जनेउ साजै ॥५॥
शंकर सुवन केसरी नंदन । तेज प्रताप महा जगवंदन ॥६॥
विद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥७॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ॥८॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा । विकट रूप धरि लंक जरावा ॥९॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे । रामचन्द्र के काज सँवारे ॥१०॥
लाय सजीवन लखन जियाये । श्री रघुवीर हरषि उर लाये ॥११॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२॥
सहस बदन तुम्हरो यश गावैं । अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं ॥१३॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ॥१४॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते । कवि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥१५॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीह्ना । राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६॥
तुम्हरो मंत्र विभीषण माना । लंकेश्वर भए सब जग जाना ॥१७॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानु । लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥१८॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥१९॥
दुर्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥२०॥
राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥२१॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना । तुम रक्षक काहू को डरना ॥२२॥
आपन तेज सम्हारो आपै । तीनों लोक हाँक तै काँपै ॥२३॥
भूत पिशाच निकट नहिं आवै । महावीर जब नाम सुनावै ॥२४॥
नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥२५॥
संकट तै हनुमान छुडावै । मन क्रम बचन ध्यान जो लावै ॥२६॥
सब पर राम तपस्वी राजा । तिनके काज सकल तुम साजा ॥२७॥
और मनोरथ जो कोई लावै । सोई अमित जीवन फल पावै ॥२८॥
चारों जुग परताप तुम्हारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ॥२९॥
साधु सन्त के तुम रखवारे । असुर निकंदन राम दुलारे ॥३०॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन जानकी माता ॥३१॥
राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ॥३२॥
तुम्हरे भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै ॥३३॥
अंतकाल रघुवरपुर जाई । जहाँ जन्म हरिभक्त कहाई ॥३४॥
और देवता चित्त ना धरई । हनुमत सेइ सर्व सुख करई ॥३५॥
संकट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरै हनुमत बलबीरा ॥३६॥
जय जय जय हनुमान गोसाईं । कृपा करहु गुरुदेव की नाईं ॥३७॥
जो शत बार पाठ कर कोई । छूटहि बंदि महा सुख होई ॥३८॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥३९॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय मह डेरा ॥४०॥
॥ दोहा ॥
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप ।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥
॥ इति श्री हनुमान चालीसा संपूर्णम् ॥