November 21, 2024

निर्जला एकादशी व्रत कथा | Nirjala Ekadashi Vrat Katha

निर्जला एकादशी व्रत :

निर्जला व्रत से ही यह ज्ञात होता है की वह व्रत जिसमे अन्न, फलाहार व् जल को त्याग करके व्रत को सम्पन करना होता है। वह व्रत निर्जला व्रत कहलाता है। यह व्रत करके श्रद्धालु वर्ष की सभी एकादशी का पुण्य प्राप्त करता है। और शास्त्रों में बताया गया है की जो भी नर नारी सच्ची आस्था से इस व्रत को सम्पूर्ण करता है उसको अंत समय भगवान् के पार्षद उसको पुष्पक विमान में ले जाते है।

व्रत की विधि व विधान :

निर्जला एकादशी व्रत भगवान विष्णु का व्रत कहलाता है इसमें भगवान विष्णु की पूजा अर्चना कर व्रत को रखते है। निर्जला एकादशी के दिन श्रदालु को स्वच्छ जल से स्न्नान आदि करके भगवान् विष्णु को गंगा जल से अभिषेक कराए। उनको पुष्प और तुलसीदल अर्पित करे व् भगवान् विष्णु की आरती करे।

किन किन बातो का ध्यान रखे :

ब्रह्मचर्य का पालन करे।
दिन में निंद्रा ना ले।
झूठ, गुस्सा, वाद – विवाद व् किसी को दंड ना दे।
कम बोले व् भगवान् का ध्यान करे।
चाय, दूध, अन्न, जल, फल को ग्रहण ना करे।
और पवित्रीकरण के समय जल आचमन के अलावा अगले दिन के सूर्यादय तक जल ग्रहण नहीं करे।
इस दिन “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का उच्चारण करना चाहिए और गौदान करना चाहिए।

व्रत की कथा :

द्वापर युग में जब ऋषि वेदव्यास जी ने पांडवो को चारों पुरुषार्थ: धर्म, अर्थ, कर्म व् मोक्ष की जानकारी प्रदान की तो उनको एकादशी व्रत का संकल्प कराया था। तब ज्येष्ठ युधिष्ठिर ने कहा: जनार्दन ! ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी होती है, कृपया उसका वर्णन कीजिये।

भगवान् श्री कृष्णा ने कहा – हे राजन् ! इसका उचित वर्णन यहा उपस्तिथ परम ज्ञानी धर्मात्मा सत्यवती नंदन श्री वेदव्यास जी करेंगे, वह सम्पूर्ण शास्त्रों के और वेद वेदांगों के पारंगत विद्वान हैं।

वेदव्यास जी ने बताया : एकादशी तिथि भगवान् विष्णु को अति प्रिय होने के कारण इसका महत्त्व अत्यधिक है। शुक्ल पक्ष व् कृष्ण पक्ष में आने वाली एकादशी तिथि को अन्न को ग्रहण करना वर्जित है, एकादशी तिथि को स्वच्छ मन से भगवान् विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इसका उपवास करना चाहिए।

वेदव्यास जी की बात सुनकर भीम बोले : हे पितामह ! माता कुंती, द्रोपदी, भ्राता युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल और सहदेव आदि सभी एकादशी का व्रत करने को कहते हैं, परंतु महाराज मैं उनसे कहता हूँ कि मैं भगवान की पूजा इत्यादि सभी कर सकता हूँ, दान भी दे सकता हूँ परंतु अन्न व् भोजन के बिना नहीं रह सकता।

व्यास जी ने कहा : यदि तुमको नरक बुरा और स्वर्ग अच्छा लगता है तो प्रत्येक मास की दोनों एक‍ा‍दशियों को अन्न मत खाया करो।

भीम कहने लगे कि हे पितामह ! मैं तो पहले से ही कह रहा हूँ कि मैं भूखा नहीं रह पाता। क्योंकि मेरे उदर में वृक नामक एक अग्नि प्रज्वलित होती है जिस कारण मैं भोजन किए बिना नहीं रह पाता, वह भोजन करने से ही शांत होती है, इसलिए पूरा उपवास तो क्या एक समय के भोजन के बिना व्यतित कर पाना भी कठिन है। अत: आप मुझे कोई ऐसा व्रत बताइए जो वर्ष में केवल एक बार करने पर ही मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो जाए।

व्यास जी ने कहा : ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष में सूर्य जब वृषभ राशि या मिथुन राशि में आए तो वह एकादशी निर्जला एकादशी कहलाती है, और केवल निर्जला एकादशी का व्रत कर लेने से ही जातक अधिकमास की दो एकादशीयों सहित साल की 25 एकादशीयों के व्रत का फल प्राप्त कर लेता है। तथा पूर्ण वर्ष की अन्य एकादशी व्रत में फलाहार ग्रहण करने का महत्त्व है। परन्तु निर्जला एकादशी व्रत में आहार और जल का ग्रहण करना वर्जित है। इसलिए इसमें निर्जल रहकर ही व्रत का पालन करना होता है, और आचमन के लिए संध्या समय से पूर्व ही दाहिने हाथ के अंगूठे के ऊपर जो छोटा सा गढ़ा बनता है उसपर जितना जल आ सकता है उसको ग्रहण करना रहता है। तद प्रचायत द्वादशी को ब्रह्म मोहरत (सूर्योदय) से पहले उठकर स्नान आदि करके और ब्राह्मणों को भोजन करा के दान दक्षिणा आदि देकर विदा करना चाहिए। इसके पश्चात ही स्वयं भोजन करना चाहिए। यह व्रत मन को संयम सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा प्रदान करता है। यह व्रत पुरुष और महिलाओं दोनों के द्वारा किया जा सकता है। निर्जला एकादशी का पुण्य समस्त तीर्थों और दान आदि कर्मों से बढ़कर होता है। मनुष्य केवल एक दिन निर्जला व्रत कर के अपने पापों से मुक्त हो सकता है। यह मुझको स्वयं – शंख, चक्र व् गदा धारण करने वाले भगवान श्री हरी ने बताया है। यहीं व्रत का विधान है।

और इस व्रत के कर लेने मात्र से जातक के अंत समय आने पर उसको यमदूत नहीं आते बल्कि सौम्य स्वभाव के हाथ में सुदर्शन धारण करने वाले विष्णुदूत उसको पुष्पक विमान से भगवान् विष्णु के धाम ले जाते है। और वह जनम मरण के बंधन से मुक्त हो जाता है।

निर्जला एकादशी को पूर्ण व्रत कर और श्रीहरि का पूजन करे। पुरुष हो या स्त्री, उन्होंने यदि मेरु पर्वत के बराबर भी महान पाप किया होगा तो भी वह सब इस एकादशी के व्रत प्रभाव से नष्ट हो जाता है। जो भी जातक निर्जला एकादशी के दिन जल के नियम का पालन कर लेता है, वह पुण्य का भागी होता है।

भगवान श्रीकृष्ण का कथन है – यदि जातक निर्जला एकादशी के दिन जैसा बताया गया है और वह वैसे ही करता है, तो वह सब अक्षय होता है। इस उपवास को करके जातक वैष्णवपद को प्राप्त कर लेता है। और उसको सदा ही मेरा आशीर्वाद प्राप्त होता है। और यदि जातक उस दिन अन्न को ग्रहण करता है, तो वह पाप का भोजन करता है। इस लोक में वह चाण्डाल के समान है और मरने पर दुर्गति को ही प्राप्त होता है।

जो ज्येष्ठ के शुक्लपक्ष में निर्जला एकादशी को व्रत करके दान करेंगे, वे मेरो को परम पद को प्राप्त होंगे। इस व्रत को करने पर जातक इन् सभी पापों से मुक्त हो जाता – जैसे ब्रह्महत्यारा, चोरी, नशा तथा गुरुद्रोही आदि।

हे कुन्तीनन्दन भीम ! निर्जला एकादशी के दिन जो भी श्रद्धालु विधिपूर्वक व्रत करते है उन्हें अग्रलिखित कर्म भी करने चाहिए, सर्वप्रथम श्री विष्णु जी का पूजन, उसके बाद जलमयी धेनु का दान अथवा प्रत्यक्ष धेनु या घृतमयी धेनु का दान और ब्राह्मण को मिष्ठानों, अन्न, जल, शैय्या, आसन, कमण्डल, छाता, शक्कर, तथा जल से भरे कलश का दान आदि करना चाहिए। और इस दिन जूता (उपाहन), वस्त्र भी दान करना चाहिए।

जो भी श्रदालु इस प्रकार पूर्ण रूप से निर्जला एकादशी का व्रत करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो आनंदमय पद को प्राप्त होता है। यह सुनकर भीमसेन ने भी इस शुभ एकादशी का व्रत आरम्भ कर दिया। इसलिए निर्जला एकादशी को भीमसेन या पांडव एकदाशी के नाम से जाना जाता है और इसको पापनाशिनी एकादशी भी कहते है।

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