November 21, 2024

श्री कृष्णा चालीसा | Shri Krishna Chalisa

॥ दोहा ॥

बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम ।
अरुण अधर जनु बिम्बा फल, पिताम्बर शुभ साज ॥
जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज ।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज ॥

॥ चौपाई ॥

जय यदुनन्दन जय जगवन्दन । जय वसुदेव देवकी नन्दन ॥१॥
जय यशुदा सुत नन्द दुलारे । जय प्रभु भक्तन के दृग तारे ॥२॥
जय नट-नागर नाग नथैया । कृष्ण कन्हैया धेनु चरइया ॥३॥
पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो । आओ दीनन कष्ट निवारो ॥४॥

वंशी मधुर अधर धरी तेरी । होवे पूर्ण मनोरथ मेरो ॥५॥
आओ हरि पुनि माखन चाखो । आज लाज भारत की राखो ॥६॥
गोल कपोल, चिबुक अरुणारे । मृदु मुस्कान मोहिनी डारे ॥७॥
रंजित राजिव नयन विशाला । मोर मुकुट वैजयंती माला ॥८॥

कुण्डल श्रवण पीतपट आछे । कटि किंकणी काछन काछे ॥९॥
नील जलज सुन्दर तनु सोहे । छवि लखि, सुर-नर मुनिमन मोहे ॥१०॥
मस्तक तिलक, अलक घुंघराले । आओ कृष्ण बांसुरी वाले ॥११॥
करि पय पान, पुतनहि तारयो । अका बका कागासुर मारयो ॥१२॥

मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला । भै शीतल, लखितहिं नन्दलाला ॥१३॥
सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई । मसूर धार वारि वर्षाई ॥१४॥
लगत-लगत ब्रज चहन बहायो । गोवर्धन नखधारि बचायो ॥१५॥
लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई । मुख महं चौदह भुवन दिखाई ॥१६॥

दुष्ट कंस अति उधम मचायो । कोटि कमल जब फूल मंगायो ॥१७॥
नाथि कालियहिं तब तुम लीन्हें । चरणचिन्ह दै निर्भय किन्हें ॥१८॥
करि गोपिन संग रास विलासा । सबकी पूरण करी अभिलाषा ॥१९॥
केतिक महा असुर संहारयो । कंसहि केस पकड़ि दै मारयो ॥२०॥

मात-पिता की बन्दि छुड़ाई । उग्रसेन कहं राज दिलाई ॥२१॥
महि से मृतक छहों सुत लायो । मातु देवकी शोक मिटायो ॥२२॥
भौमासुर मुर दैत्य संहारी । लाये षट दश सहसकुमारी ॥२३॥
दै भिन्हीं तृण चीर सहारा । जरासिंधु राक्षस कहं मारा ॥२४॥

असुर बकासुर आदिक मारयो । भक्तन के तब कष्ट निवारियो ॥२५॥
दीन सुदामा के दुःख टारयो । तंदुल तीन मूंठ मुख डारयो ॥२६॥
प्रेम के साग विदुर घर मांगे । दुर्योधन के मेवा त्यागे ॥२७॥
लखि प्रेम की महिमा भारी । ऐसे श्याम दीन हितकारी ॥२८॥

भारत के पारथ रथ हांके । लिए चक्र कर नहिं बल ताके ॥२९॥
निज गीता के ज्ञान सुनाये । भक्तन ह्रदय सुधा वर्षाये ॥३०॥
मीरा थी ऐसी मतवाली । विष पी गई बजाकर ताली ॥३१॥
राना भेजा सांप पिटारी । शालिग्राम बने बनवारी ॥३२॥

निज माया तुम विधिहिं दिखायो । उर ते संशय सकल मिटायो ॥३३॥
तब शत निन्दा करी तत्काला । जीवन मुक्त भयो शिशुपाला ॥३४॥
जबहिं द्रौपदी टेर लगाई । दीनानाथ लाज अब जाई ॥३५॥
तुरतहिं वसन बने ननन्दलाला । बढ़े चीर भै अरि मुँह काला ॥३६॥

अस नाथ के नाथ कन्हैया । डूबत भंवर बचावत नैया ॥३७॥
सुन्दरदास आस उर धारी । दयादृष्टि कीजै बनवारी ॥३८॥
नाथ सकल मम कुमति निवारो । क्षमहु बेगि अपराध हमारो ॥३९॥
खोलो पट अब दर्शन दीजै । बोलो कृष्ण कन्हैया की जै ॥४०॥ 

॥ दोहा ॥

यह चालीसा कृष्ण का, पाठ करै उर धारि ।
अष्ट सिद्धि नवनिधि फल, लहै पदारथ चारि ॥

॥ इति श्री कृष्णा चालीसा संपूर्णम् ॥

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