॥ दोहा ॥
श्री भैरव सङ्कट हरन, मंगल करन कृपालु ।
करहु दया जि दास पे, निशिदिन दीनदयालु ॥
॥ चौपाई ॥
जय डमरूधर नयन विशाला । श्याम वर्ण, वपु महा कराला ॥१॥
जय त्रिशूलधर जय डमरूधर । काशी कोतवाल, संकटहर ॥२॥
जय गिरिजासुत परमकृपाला । संकटहरण हरहु भ्रमजाला ॥३॥
जयति बटुक भैरव भयहारी । जयति काल भैरव बलधारी ॥४॥
अष्टरूप तुम्हरे सब गायें । सकल एक ते एक सिवाये ॥५॥
शिवस्वरूप शिव के अनुगामी । गणाधीश तुम सबके स्वामी ॥६॥
जटाजूट पर मुकुट सुहावै । भालचन्द्र अति शोभा पावै ॥७॥
कटि करधनी घुँघरू बाजै । दर्शन करत सकल भय भाजै ॥८॥
कर त्रिशूल डमरू अति सुन्दर । मोरपंख को चंवर मनोहर ॥९॥
खप्पर खड्ग लिये बलवाना । रूप चतुर्भुज नाथ बखाना ॥१०॥
वाहन श्वान सदा सुखरासी । तुम अनन्त प्रभु तुम अविनाशी ॥११॥
जय जय जय भैरव भय भंजन । जय कृपालु भक्तन मनरंजन ॥१२॥
नयन विशाल लाल अति भारी । रक्तवर्ण तुम अहहु पुरारी ॥१३॥
बं बं बं बोलत दिनराती । शिव कहँ भजहु असुर आराती ॥१४॥
एकरूप तुम शम्भु कहाये । दूजे भैरव रूप बनाये ॥१५॥
सेवक तुमहिं तुमहिं प्रभु स्वामी । सब जग के तुम अन्तर्यामी ॥१६॥
रक्तवर्ण वपु अहहि तुम्हारा । श्यामवर्ण कहुं होई प्रचारा ॥१७॥
श्वेतवर्ण पुनि कहा बखानी । तीनि वर्ण तुम्हरे गुणखानी ॥१८॥
तीनि नयन प्रभु परम सुहावहिं । सुरनर मुनि सब ध्यान लगावहिं ॥१९॥
व्याघ्र चर्मधर तुम जग स्वामी । प्रेतनाथ तुम पूर्ण अकामी ॥२०॥
चक्रनाथ नकुलेश प्रचण्डा । निमिष दिगम्बर कीरति चण्डा ॥२१॥
क्रोधवत्स भूतेश कालधर । चक्रतुण्ड दशबाहु व्यालधर ॥२२॥
अहहिं कोटि प्रभु नाम तुम्हारे । जयत सदा मेटत दुःख भारे ॥२३॥
चौंसठ योगिनी नाचहिं संगा । क्रोधवान तुम अति रणरंगा ॥२४॥
भूतनाथ तुम परम पुनीता । तुम भविष्य तुम अहहू अतीता ॥२५॥
वर्तमान तुम्हरो शुचि रूपा । कालजयी तुम परम अनूपा ॥२६॥
ऐलादी को संकट टार्यो । साद भक्त को कारज सारयो ॥२७॥
कालीपुत्र कहावहु नाथा । तव चरणन नावहुं नित माथा ॥२८॥
श्री क्रोधेश कृपा विस्तारहु । दीन जानि मोहि पार उतारहु ॥२९॥
भवसागर बूढत दिनराती । होहु कृपालु दुष्ट आराती ॥३०॥
सेवक जानि कृपा प्रभु कीजै । मोहिं भगति अपनी अब दीजै ॥३१॥
करहुँ सदा भैरव की सेवा । तुम समान दूजो को देवा ॥३२॥
अश्वनाथ तुम परम मनोहर । दुष्टन कहँ प्रभु अहहु भयंकर ॥३३॥
तम्हरो दास जहाँ जो होई । ताकहँ संकट परै न कोई ॥३४॥
हरहु नाथ तुम जन की पीरा । तुम समान प्रभु को बलवीरा ॥३५॥
सब अपराध क्षमा करि दीजै । दीन जानि आपुन मोहिं कीजै ॥३६॥
जो यह पाठ करे चालीसा । तापै कृपा करहु जगदीशा ॥३७॥
॥ दोहा ॥
जय भैरव जय भूतपति, जय जय जय सुखकंद ।
करहु कृपा नित दास पे, देहुं सदा आनन्द ॥
॥ इति श्री भैरव चालीसा संपूर्णम् ॥