रेवती नक्षत्र में जन्मे जातक के विषय में दैवज्ञों का मत
दैवज्ञ वराहमिहिर : – रेवती नक्षत्र में जन्मा जातक शारीरिक सर्वाङ्ग से सुपूर्ण सम्पनं, लोकप्रिय, रणप्रिय तथा शुद्ध आत्मा का धनि होता है।
दैवज्ञ वैद्यनाथ : – जातक की जंघाऐं वांछन युक्त ( जन्मजात चिन्ही ) कामातुर, सुदर्शन, सरकार में मंत्री, स्त्री और पुत्रों से युक्त धीर और वैभवशाली होता है।
दैवज्ञ मानसागर : – जातक सभी अंगों से परिपूर्ण, पवित्र, सामर्थवान, शुद्ध आत्मा का वीर, दैवज्ञ, आभूषणों से युक्त धनवान होता है।
दैवज्ञ ढ़ंढ़िराज : – यह जातक सुन्दर स्वभाव वाला, वैभवशाली, जितेन्द्रिय, सत्कार्यों द्वारा अर्जित धनवाला, एक मन वाला तथा निश्चित रूप से महामति वाला होता है।
दैवज्ञ श्रीनृसिंह : – यह जातक सुन्दर देहवाला, शूर, शुद्ध व धनवान होता है। पाप योग व अन्य उत्पात आदि न हो तो जातक सम्पूर्ण फलका भोगी होताहै।
“राश्यायुविचार में दैवज्ञ रोमक, यवन, जनमप्रदीप तथा मानसागर का मत उत्तराभाद्रपद की भांति ही है।”
जातक सुन्दर व्यक्तित्व वाला गौर वर्ण, वाक् पटुता वाला, चंचल सत्कर्मों से धनी तथा बहुत भाग्यशाली होता है। राजनीति भी करता है किन्तु गोपनीयता नहीं होने के कारण शत्रु अपना दबदबा बनाए रखता है। अपनी अकल के सामने दूसरे को तुच्छ समझता है। कोई भी निर्णय चिन्तन करने के बाद ही लेता है। माता पिता का आज्ञाकारी व देव – ब्राह्मण – गुरुजनों का भक्त होता है। जातक जिस कार्य को करने का मन लेता है उसे पूरा किये बगैर आराम नहीं करता। बहुत पढ़ा – लिखा गुणी होता है। पुरातत्व, ज्योतिष व नक्षत्र विषय में अधिक अधिक से जानकारी रखने का शौकीन होता है। ३० के अंदर का समय शुभ तथा ३० से ४० वर्ष का मध्यम व् ४० से उपर का समय उत्तोत्तम होता है।
रेवती नक्षत्र के प्रथम चरण में सूर्यादि ग्रहों का फल
यवनोक्त : – यह जातक ज्ञानी होता है।
मान सागर : – यह जातक कपटी होता है।
नक्षत्र विचार : – जातक भाग्यशाली, ज्ञानी, धनी व सुखी होता है। इस चरण और नक्षत्र दोनों का स्वामी बुध तथा राशि स्वामी गुरु है।
सूर्य : – जातक शत्रु पर विजय प्राप्त करने वाला, सोच – समझकर कदम उठाने वाला, धनी, सुखी तथा भोगी होता है। समाज में उनकी बहुत मान्यता होती है राजनीति में भी तरक्की करता है। परन्तु व्यवसायिक श्रेत्र में एक बार भारी धन की श्रति होती है कालान्तर में ठीक हो जाता है।
चन्द्र : – जातक २७ और ३६ वर्ष के बीच का समय पार कर जाय तो ६१ वर्ष जीता है। १८ वर्ष में भी रोगी रहता है। जातक पिता के व्यवसाय को भी संभालने वाला होता है। दाम्पत्य जीवन सुखी रहता है।
मंगल : – जातक कोई भी कार्य अपनी बुद्धिमत्ता से सम्पन करता है। अपने शत्रुओ को कभी कमजोर नहीं समझता तथा शत्रु को परास्त किये वगैर शान्त नहीं होता है। चुस्त – दुरस्त यह जातक अंधविश्वासी भी नहीं होता तथा कर्मठ होता है।
बुध : – जातक बहुत बुद्धिमान, कपटी तथा राजनायिक होता है। अध्ययन – अध्यापन में भी इनकी अत्यधिक रूचि होती है। धनी, सुखी व भोगी होते है हुए प्रतिष्ठित पदों पर बना रहता है। इनकी पत्नी भी पढ़ी – लिखी व धनोपार्जन करने वाली होती है।
बृहस्पति : – जातक ज्ञानवान, सुन्दर शरीरवाला, राजनीतिज्ञ, देश काल वातावरण के अनुसार तरक्की करने वाला तथा धनी – भोगी होता है। इनकी पत्नी भी उद्योग करने वाली अथवा राजनीतिज्ञ होता है।
शुक्र : – जातक धनी, सम्भोगी व मदिरा का प्रेमी होता है। जहां रहें वहीं राजनीतिज्ञ करता है, परन्तु विदेश प्रवास की स्थिति में अपना व्यवसाय या उद्योग करता है। आर्थिक रूप से सुदृढ़ तथा रोगी रहता है।
शनि : – जातक छल कपट से युक्त बुद्धिमान, भोगी, नौकरी करने वाला अथवा छोटे मोटे व्यवसाय करने वाला होता है। जातक का मध्य दाम्पत्य जीवन अशांती से गुजरता है। उत्तराद्ध भाग सुखमयी तथा प्रारंभिक काल हास्य – विनोद में ही गुजरता है।
राहु : – जातक किसी महान व्यक्तित्व के व्यक्ति का कृपापात्र होता है। इनकी पढ़ाई ना के बराबर होती है फिर भी जातक अच्छी तरह जीवन जीता है, ४० वर्ष के बाद का समय पहले की अपेक्षा सुदृढ़ होता है।
केतु : – जातक चंचल बुद्धि का भाग्यशाली व सुखी होता है। अपने व्यवसाय अथवा कार्य में हमेशा व्यस्त रहता है, जिससे इनकी पत्नी को कष्ट होता है। इनकी संतान भी कुशल व्यावहारिक व सुखी होती है।
रेवती नक्षत्र के द्वितीय चरण में सूर्यादि ग्रहों का फल
यवनोक्त : – यह जातक चोर होता है।
मान सागर : – यह जातक निर्धन होता है।
नक्षत्र विचार : – जातक के सम्बन्ध में मेरा मानना है कि यह संघर्षमयी तथा मध्यम श्रेणी का जीवन जीता है। इस चरण का स्वामी शनि, नक्षत्र स्वामी बुध व राशि स्वामी बृहस्पति है।
सूर्य : – जातक भूतात्मा की चपेट में भी रहता है। इन्हें रोग होने का वहम हमेशा बना रहता है; जिससे इनका व्यवसाय अथवा रोजगार प्रभावित रहता है। जातक की पत्नी समझदार होती है।
चन्द्र : – जातक लाभ – हानि के चक्रव्यूह में परेशान रहता है। खाने पीने तथा शृंगार का शौकीन होने के कारण ख़र्चीला होता है। दुर्घटना से बच जाय तो ७२ वर्ष जीता है। इनकी पत्नी भी अत्यधिक सुन्दर होती है।
मंगल : – जातक ईश्वर के प्रति समर्पित रहता है तथा असफलता मिलने पर भाग्य का दोष कहकर संतोष कर लेता है। परिस्तिथिवश जातक नीच कर्म करने पर भी उतारू हो जाता है। इनकी पत्नी झगड़ालु होती है।
बुध : – जातक समय की पहचान किये वगैर किसी भी कार्य में हस्तश्रेप नहीं करता है। अपनी कल्पनाशक्ति अथवा पत्रकारिता के जरिये रोजी रोटी कमाता है। यह जातक बहुत मेहनती, दूर दूर की यात्रा करने वाला अथवा प्रवासी होता है।
बृहस्पति : – जातक व्यक्तित्व का धनी किन्तु मध्यम स्तर का जीवन जीता है।
शुक्र : – जातक राजनीतिज्ञ व समाजिक कार्य कर्ता के रूप में प्रतिष्ठित होता है। जन सेवा करने वाला, भोगी तथा कामात्तुर होता है। इन पर आरोप भी लगता है।
शनि : – जातक छल – कपट से भरा अभद्र व्यवहार करने वाला होता है। अवैध कार्य द्वारा धन कमाने वाला, धार्मिक होने का दिखावा करने वाला महान ढोंगी होता है। इनकी भाषा बहुत ही मधुर होती है, जिससे कोई भी इनके बहकावे में आ जाता है।
राहु : – जातक मातृ या पितृ सुख से हीन, बचपन में रोगी तथा वहमी होता है। इनकी पत्नी हमेशा संदेह में रहती है कभी कभी आत्महत्या, विषपान या आग लगाकर प्राण त्याग देती है।
केतु : – जातक किसी पर विश्वास नहीं करता। एक बार धोखा मिलने पर जातक जीवन भर सर्तक रहता है।
रेवती नक्षत्र के तृतीय चरण में सूर्यादि ग्रहों का फल
यवनोक्त : – यह जातक युद्ध में विजय प्राप्त करने वाला होता है।
मान सागर : – यह जातक भाग्यवान होता है।
नक्षत्र विचार : – जातक संघर्षमयी जीवन बिताने वाला होता है। इस चरण का स्वामी शनि, नक्षत्र स्वामी बुध तथा राशि स्वामी बृहस्पति है।
सूर्य : – रेवती द्वितीय चरण की भाँति ही फल। विशेष में जातक घेरलु समस्या से परेशान व अशान्त रहता है।
चन्द्र : – रेवती द्वितीय चरण की भाँति ही फल। विशेष में जातक यहां निरोग होकर रण विजयी होता है। लड़ाई में अधिक धन खर्च होता है।
मंगल : – रेवती द्वितीय चरण की भाँति ही फल। विशेष में जातक मर्यादित जीवन जीने के लिए संघर्ष करता है।
बुध : – रेवती द्वितीय चरण की भाँति ही फल। विशेष में यह जातक तर्क – विर्तक करने वाला होता है।
बृहस्पति : – रेवती द्वितीय चरण की भाँति ही फल। विशेष में यह जातक अधिक लाभान्वित होता है तथा मंत्री बनता है।
शुक्र : – रेवती द्वितीय चरण की भाँति ही फल। विशेष में यह जातक तंत्र मंत्र का भी प्रयोग करने वाला होता है।
शनि : – रेवती द्वितीय चरण की भाँति ही फल। विशेष में यह जातक प्रवासी, सजाभोगी अथवा सन्यासी भी होता है।
राहु : – रेवती द्वितीय चरण की भाँति ही फल।
केतु : – रेवती द्वितीय चरण की भाँति ही फल।
रेवती नक्षत्र के चतुर्थ चरण में सूर्यादि ग्रहों का फल
यवनोक्त : – यह जातक क्लेश युक्त जीवन जीता है।
मान सागर : – यह जातक क्लेश हीन जीवन जीता है।
नक्षत्र विचार : – जातक बहुत बुद्धिमान, राजमंत्री होता है। यदि माता पिता दोनों का साया बना रहा तो जातक महान राजनीतिज्ञ अथवा बहुत बड़ा उद्योगपति होता है। इस चरण का स्वामी बृहस्पति नक्षत्र स्वामी बुध तथा राशि स्वामी बृहस्पति है।
सूर्य : – जातक प्रतिष्ठित जीवन जीना चाहता है। लेकिन समय की घटना इन्हें ऐसे मोड़ पर खड़ा कर देती है जहां से उबरना मुश्किल लगने लगता है।
चन्द्र : – जातक २७ वर्ष तक कुशल जीवन बिता लेता है तो ३५ वर्ष के बाद और ५० वर्ष तक की आयु में लक्ष्य से अधिक उपलब्धि करने वाला होता है।
मंगल : – जातक अपने नजदीकी संबंधियों से दूर रहना अधिक पसंद करता है। पारिवारिक जीवन कष्टमयी रहता है।
बुध : – जातक बहुत बुद्धिजीवी तथा भाषाओं का ज्ञाता होता है। इनकी पत्नी धैयवान होती है। आपत्ति विपत्ति में भी यह जातक नहीं घबराता और मुकबला करता है। दुःखो का आना जाना लगा ही रहता है।
बृहस्पति : – जातक गुरु और ब्राह्मण देव का अनन्य भक्त होता है। ये धार्मिक होने के कारण नास्तिक व्यक्तियों से बैर रखता है।
शुक्र : – जातक बहुत बड़ा राजनीतिज्ञ, कामात्तुर तथा सर्वोच्च पदाधिकारी होता है। इनकी पत्नी भी इन्हीं के समान व्यक्तित्व शाली होती है। किन्तु संतान की और से दुःखी रहता है।
शनि : – जातक शृंगार एवं मनोरंजन कार्य से धनोपार्जन करता है अथवा अभिनय, लेखन, पत्रकारिता तथा बहुत यात्रा करने वाले कार्य से धनोपार्जन करता है। दुर्घटना कई बार होती है।
राहु : – जातक सरकारी अथवा साधारण नौकरी करने वाला होता है। इनकी पत्नी समझदार होती है।
केतु : – जातक कष्टमयी जीवन जीने पर मजबूर होता है। जबकि जातक धार्मिक प्रवृति का होता है किन्तु सुरा – सुन्दरी का प्रेमी तथा जुआरि भी होता है।