॥ दोहा ॥
हे पितरेश्वर आपको, दे दियो आशीर्वाद ।
चरणाशीश नवा दियो, रखदो सिर पर हाथ ॥
सबसे पहले गणपत, पाछे घर का देव मनावा जी ।
हे पितरेश्वर दया राखियो, करियो मन की चाया जी ॥
॥ चौपाई ॥
पितरेश्वर करो मार्ग उजागर । चरण रज की मुक्ति सागर ॥१॥
परम उपकार पित्तरेश्वर कीन्हा । मनुष्य योणि में जन्म दीन्हा ॥२॥
मातृ-पितृ देव मनजो भावे । सोई अमित जीवन फल पावे ॥३॥
जय-जय-जय पित्तर जी साईं । पितृ ऋण बिन मुक्ति नाहिं ॥४॥
चारों ओर प्रताप तुम्हारा । संकट में तेरा ही सहारा ॥५॥
नारायण आधार सृष्टि का । पित्तरजी अंश उसी दृष्टि का ॥६॥
प्रथम पूजन प्रभु आज्ञा सुनाते । भाग्य द्वार आप ही खुलवाते ॥७॥
झुंझुनू में दरबार है साजे । सब देवों संग आप विराजे ॥८॥
प्रसन्न होय मनवांछित फल दीन्हा । कुपित होय बुद्धि हर लीन्हा ॥९॥
पित्तर महिमा सबसे न्यारी । जिसका गुणगावे नर नारी ॥१०॥
तीन मण्ड में आप बिराजे । बसु रुद्र आदित्य में साजे ॥११॥
नाथ सकल संपदा तुम्हारी । मैं सेवक समेत सुत नारी ॥१२॥
छप्पन भोग नहीं हैं भाते । शुद्ध जल से ही तृप्त हो जाते ॥१३॥
तुम्हारे भजन परम हितकारी । छोटे बड़े सभी अधिकारी ॥१४॥
भानु उदय संग आप पुजावै । पांच अँजुलि जल रिझावे ॥१५॥
ध्वज पताका मण्ड पे है साजे । अखण्ड ज्योति में आप विराजे ॥१६॥
सदियों पुरानी ज्योति तुम्हारी । धन्य हुई जन्म भूमि हमारी ॥१७॥
शहीद हमारे यहाँ पुजाते । मातृ भक्ति संदेश सुनाते ॥१८॥
जगत पित्तरो सिद्धान्त हमारा । धर्म जाति का नहीं है नारा ॥१९॥
हिन्दु, मुस्लिम, सिख, ईसाई । सब पूजे पित्तर भाई ॥२०॥
हिन्दु वंश वृक्ष है हमारा । जान से ज्यादा हमको प्यारा ॥२१॥
गंगा ये मरुप्रदेश की । पितृ तर्पण अनिवार्य परिवेश की ॥२२॥
बन्धु छोड़ना इनके चरणाँ । इन्हीं की कृपा से मिले प्रभु शरणा ॥२३॥
चौदस को जागरण करवाते । अमावस को हम धोक लगाते ॥२४॥
जात जडूला सभी मनाते । नान्दीमुख श्राद्ध सभी करवाते ॥२५॥
धन्य जन्म भूमि का वो फूल है । जिसे पितृ मण्डल की मिली धूल है ॥२६॥
श्री पित्तर जी भक्त हितकारी । सुन लीजे प्रभु अरज हमारी ॥२७॥
निशदिन ध्यान धरे जो कोई । ता सम भक्त और नहीं कोई ॥२८॥
तुम अनाथ के नाथ सहाई । दीनन के हो तुम सदा सहाई ॥२९॥
चारिक वेद प्रभु के साखी । तुम भक्तन की लज्जा राखी ॥३०॥
नाम तुम्हारो लेत जो कोई । ता सम धन्य और नहीं कोई ॥३१॥
जो तुम्हारे नित पाँव पलोटत । नवों सिद्धि चरणा में लोटत ॥३२॥
सिद्धि तुम्हारी सब मंगलकारी । जो तुम पे जावे बलिहारी ॥३३॥
जो तुम्हारे चरणा चित्त लावे । ताकी मुक्ति अवसी हो जावे ॥३४॥
सत्य भजन तुम्हारो जो गावे । सो निश्चय चारों फल पावे ॥३५॥
तुमहिं देव कुलदेव हमारे । तुम्हीं गुरुदेव प्राण से प्यारे ॥३६॥
सत्य आस मन में जो होई । मनवांछित फल पावें सोई ॥३७॥
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई । शेष सहस्र मुख सके न गाई ॥३८॥
मैं अतिदीन मलीन दुखारी । करहु कौन विधि विनय तुम्हारी ॥३९॥
अब पित्तर जी दया दीन पर कीजै । अपनी भक्ति शक्ति कछु दीजै ॥४०॥
॥ दोहा ॥
पित्तरौं को स्थान दो, तीरथ और स्वयं ग्राम ।
श्रद्धा सुमन चढ़ें वहां, पूरण हो सब काम ॥
झुंझुनू धाम विराजे हैं, पित्तर हमारे महान ।
दर्शन से जीवन सफल हो, पूजे सकल जहान ॥
जीवन सफल जो चाहिए, चले झुंझुनू धाम ।
पित्तर चरण की धूल ले, हो जीवन सफल महान ॥
॥ इति श्री पितर चालीसा संपूर्णम् ॥