November 21, 2024

श्री आदिनाथ चालीसा | Shri Aadinath Chalisa

॥ दोहा ॥

शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन को, करूं प्रणाम ।
उपाध्याय आचार्य का, ले सुखकारी नाम ॥

सर्व साधु और सरस्वती, जिन मन्दिर सुखकार ।
आदिनाथ भगवान को, मन मन्दिर में धार ॥

॥ चौपाई ॥

जै जै आदिनाथ जिन स्वामी । तीनकाल तिहूं जग में नामी ॥१॥
वेष दिगम्बर धार रहे हो । कर्मो को तुम मार रहे हो ॥२॥
हो सर्वज्ञ बात सब जानो । सारी दुनियां को पहचानो ॥३॥
नगर अयोध्या जो कहलाये । राजा नाभिराज बतलाये ॥४॥

मरुदेवी माता के उदर से । चैत वदी नवमी को जन्मे ॥५॥
तुमने जग को ज्ञान सिखाया । कर्मभूमी का बीज उपाया ॥६॥
कल्पवृक्ष जब लगे बिछरने । जनता आई दुखड़ा कहने ॥७॥
सब का संशय तभी भगाया । सूर्य चन्द्र का ज्ञान कराया ॥८॥

खेती करना भी सिखलाया । न्याय दण्ड आदिक समझाया ॥९॥
तुमने राज किया नीति का । सबक आपसे जग ने सीखा ॥१०॥
पुत्र आपका भरत बताया । चक्रवर्ती जग में कहलाया ॥११॥
बाहुबली जो पुत्र तुम्हारे । भरत से पहले मोक्ष सिधारे ॥१२॥

सुता आपकी दो बतलाई । ब्राह्मी और सुन्दरी कहलाई ॥१३॥
उनको भी विध्या सिखलाई । अक्षर और गिनती बतलाई ॥१४॥
एक दिन राजसभा के अंदर । एक अप्सरा नाच रही थी ॥१५॥
आयु उसकी बहुत अल्प थी । इसलिए आगे नहीं नाच रही थी ॥१६॥

विलय हो गया उसका सत्वर । झट आया वैराग्य उमड़कर ॥१७॥
बेटो को झट पास बुलाया । राज पाट सब में बंटवाया ॥१८॥
छोड़ सभी झंझट संसारी । वन जाने की करी तैयारी ॥१९॥
राव हजारों साथ सिधाए । राजपाट तज वन को धाये ॥२०॥

लेकिन जब तुमने तप किना । सबने अपना रस्ता लीना ॥२१॥
वेष दिगम्बर तजकर सबने । छाल आदि के कपड़े पहने ॥२२॥
भूख प्यास से जब घबराये । फल आदिक खा भूख मिटाये ॥२३॥
तीन सौ त्रेसठ धर्म फैलाये । जो अब दुनियां में दिखलाये ॥२४॥

छै: महीने तक ध्यान लगाये । फिर भजन करने को धाये ॥२५॥
भोजन विधि जाने नहि कोय । कैसे प्रभु का भोजन होय ॥२६॥
इसी तरह बस चलते चलते । छः महीने भोजन बिन बीते ॥२७॥
नगर हस्तिनापुर में आये । राजा सोम श्रेयांस बताए ॥२८॥

याद तभी पिछला भव आया । तुमको फौरन ही पड़धाया ॥२९॥
रस गन्ने का तुमने पाया । दुनिया को उपदेश सुनाया ॥३०॥
पाठ करे चालीसा दिन । नित चालीसा ही बार ॥३१॥
चांदखेड़ी में आय के । खेवे धूप अपार ॥३२॥

जन्म दरिद्री होय जो । होय कुबेर समान ॥३३॥
नाम वंश जग में चले । जिनके नहीं संतान ॥३४॥
तप कर केवल ज्ञान पाया । मोक्ष गए सब जग हर्षाया ॥३५॥
अतिशय युक्त तुम्हारा मन्दिर । चांदखेड़ी भंवरे के अंदर ॥३६॥

उसका यह अतिशय बतलाया । कष्ट क्लेश का होय सफाया ॥३७॥
मानतुंग पर दया दिखाई । जंजीरे सब काट गिराई ॥३८॥
राजसभा में मान बढ़ाया । जैन धर्म जग में फैलाया ॥३९॥
मुझ पर भी महिमा दिखलाओ । कष्ट भक्त का दूर भगाओ ॥४०॥

॥ सोरठा ॥

पाठ करे चालीसा दिन, नित चालीसा ही बार ।
चांदखेड़ी में आय के, खेवे धूप अपार ॥

जन्म दरिद्री होय जो, होय कुबेर समान ।
नाम वंश जग में चले, जिनके नहीं संतान ॥

॥ इति श्री आदिनाथ चालीसा संपूर्णम् ॥

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